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कांग्रेस का वक्फ कानून: 1995,धार्मिक स्थलों पर कब्जे का अधिकार देने वाला कठोर अधिनियम।

गिरिराज शर्मा ( विश्लेषक )

वक्फ अधिनियम 1995, जिसे कांग्रेस सरकार द्वारा लागू किया गया था, कई लोगों के अनुसार एक कठोर कानून है जो वक्फ बोर्ड को हिंदू संपत्तियों और पूजा स्थलों पर अतिक्रमण करने का अधिकार देता है। इस कानून का दुरुपयोग अक्सर देखा गया है, जहां निजी जमीन पर अवैध मजार बना दी जाती है और फिर वहां बोर्ड लगा दिया जाता है कि “यह जमीन वक्फ बोर्ड की संपत्ति है”। इस प्रक्रिया से न केवल हिंदू संपत्तियों पर अवैध कब्जा होता है, बल्कि धार्मिक स्थलों की पवित्रता भी खतरे में पड़ जाती है।

वक्फ अधिनियम 1995, जिसे कांग्रेस सरकार ने लागू किया, एक कठोर कानून माना जाता है, जो वक्फ बोर्ड को हिंदू संपत्तियों और पूजा स्थलों पर अतिक्रमण का अधिकार देता है। इस कानून का दुरुपयोग कर, कई बार निजी जमीनों और धार्मिक स्थलों पर अवैध कब्जा कर लिया जाता है। वक्फ बोर्ड को मिले इन असीमित अधिकारों के कारण, कई समुदायों में असंतोष और चिंता बढ़ रही है। लोग इस अधिनियम के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, इसे या तो संशोधित करने या पूरी तरह से निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, ताकि न्याय और समानता की भावना को बहाल किया जा सके।

वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड को संपत्ति पर दावा करने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए हैं। आज वक्फ संपत्तियों का अनुमानित क्षेत्रफल लगभग 6,00,000 एकड़ है, जिससे वक्फ बोर्ड देश में तीसरा सबसे बड़ा भूमि स्वामी बन गया है। यह स्थिति कई लोगों के बीच चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि इसे देश के संसाधनों पर एक गुप्त कब्जे के रूप में देखा जा रहा है, जिसे हमारे अपने कानूनों द्वारा संरक्षित किया गया है।

वक्फ अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, यदि वक्फ बोर्ड यह दावा करे कि सुप्रीम कोर्ट की इमारत वक्फ की संपत्ति है, तो सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार उस दावे को किसी भी अन्य कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते। उन्हें यह मामला केवल वक्फ बोर्ड के समक्ष ही प्रस्तुत करना होगा। यह प्रावधान वक्फ बोर्ड को अत्यधिक अधिकार देता है, जिससे वह किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है, चाहे वह कितनी ही महत्वपूर्ण या संवेदनशील क्यों न हो। इस तरह के मामलों में, न्यायिक प्रणाली के सामने वक्फ बोर्ड के विशेषाधिकारों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जिससे कानून के समक्ष समानता की भावना को चुनौती मिलती है।

वक्फ बोर्ड का अस्तित्व कई लोगों के अनुसार न केवल गैरकानूनी है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के भी विरुद्ध है। आंकड़ों के अनुसार, वक्फ बोर्ड के पास इतनी भूमि है, जितनी अलग हुए पाकिस्तान के भूभाग के बराबर है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि यह भूमि वह नहीं है जो किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत से अर्जित की और उसे अल्लाह के नाम पर दान कर दिया। बल्कि, इसमें से अधिकांश भूमि हिंदू, सिख और जैन समाज से जबरन कब्जाई गई है।

वक्फ बोर्ड के अधिकारों को लेकर कई सवाल उठते हैं, खासकर जब वह संपत्तियों पर दावा करता है जिन्हें विभिन्न समुदायों ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए महत्व दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था, जिसमें सभी अवैध मस्जिदों, मजारों और दरगाहों को सड़कों, चौराहों, फ्लाईओवरों और रेलवे प्लेटफार्मों से हटाने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश इस बात की पुष्टि करता है कि सार्वजनिक स्थलों पर किसी भी धर्म से संबंधित अवैध निर्माण स्वीकार्य नहीं है।

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