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Bachh Baras 2024- जानें आज के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत का महत्व। जाने

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस का व्रत मनाया जाता है। साल 2024 में यह व्रत 30 अगस्त, शुक्रवार को होगा। द्वादशी तिथि 29 अगस्त की रात 01 बजकर 37 मिनट से शुरू होगी और 30 अगस्त की रात 02 बजकर 25 मिनट तक चलेगी। चूंकि द्वादशी तिथि का सूर्योदय 30 अगस्त को होगा, इसलिए व्रत उसी दिन किया जाएगा।

बछ बारस का महत्व और व्रत का उद्देश्य

बछ बारस, जिसे गोवत्स द्वादशी भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण हिन्दू व्रत है जिसमें गाय और बछड़ों की पूजा की जाती है। यह व्रत विशेष रूप से उन माताओं द्वारा किया जाता है जिनके पुत्र होते हैं, और इसका मुख्य उद्देश्य पुत्र की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए भगवान से प्रार्थना करना होता है। यह व्रत धार्मिक आस्था और समर्पण का प्रतीक है, जो माताओं की स्नेह और संजीवनी शक्ति को दर्शाता है।

बछ बारस 2024 शुभ मुहूर्त और योग

2024 में बछ बारस के दिन पुनवर्सु नक्षत्र रहेगा, और इस दिन सर्वार्थसिद्धि नामक शुभ योग का प्रभाव रहेगा, जो शाम 05:55 तक रहेगा। यह योग किसी भी शुभ कार्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। पूजा के लिए निम्नलिखित मुहूर्त सबसे शुभ माने जाते हैं:- सुबह 07:46 से 09:19 तक- दोपहर 12:02 से 12:52 तक- दोपहर 12:27 से 02:01 तक- शाम 05:08 से 06:42 तक

बछ बारस की पूजा विधि

1.प्रारंभिक तैयारी – 30 अगस्त की सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और व्रत का संकल्प लें। इस दिन गाय के दूध, दही, गेहूं की बनी चीजें और मूंग की दाल का सेवन न करें। सब्जी काटने से भी बचें।

2. गाय और बछड़े की पूजा — उपरोक्त किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को स्नान कराएं। उन्हें नए वस्त्र पहनाएं और फूलों की माला पहनाकर पूजा करें।

3. मंत्र जाप और पूजा — पूजा के दौरान मन ही मन कामधेनु का स्मरण करें। एक बर्तन में चावल, तिल, जल, और सुगंधित पदार्थ मिलाकर गाय के पैरों को धोते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करें

ओम ह्लीं क्लीं गोवर्धनाय नमः

यह व्रत माताओं की संतान के प्रति स्नेह और सुरक्षा की भावना को प्रकट करता है और परिवार की खुशहाली की कामना करता है। इस दिन किए गए धार्मिक कृत्य और पूजाएं भगवान की कृपा प्राप्त करने का माध्यम बनती हैं।

बछ बारस 2024 गाय की पूजा और तिलक विधि

बछ बारस का महत्व बछ बारस, जिसे गोवत्स द्वादशी भी कहा जाता है, एक विशेष हिन्दू व्रत है जो भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गाय और बछड़ों की पूजा की जाती है, और यह व्रत मुख्य रूप से माताओं द्वारा किया जाता है। इसका उद्देश्य पुत्र की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भगवान से प्रार्थना करना होता है।

गाय की पूजा और तिलक विधि**

1. गाय के पैरों की पूजा: – बछ बारस के दिन गाय और उसके बछड़े को स्नान कराएं और उन्हें नए वस्त्र पहनाएं। – गाय के पैरों को अच्छे से धोएं। उसके बाद गाय के पैरों में लगी मिट्टी को एक बर्तन में इकट्ठा करें।

2. मस्तक पर तिलक – इकट्ठी की गई मिट्टी को अपने मस्तक पर तिलक के रूप में लगाएं। यह माना जाता है कि गाय की मिट्टी को मस्तक पर तिलक करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

3.आरती और कथा – गाय की पूजा के बाद उसकी आरती करें। आरती करते समय गाय के चारों ओर दीपक घुमाएं और धार्मिक भजन गाएं। – बछ बारस की कथा सुनें। कथा सुनना इस व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भक्तों को धार्मिक शिक्षा और आस्था प्रदान करता है। मान्यता है कि इस व्रत से पुत्र की आयु लंबी होती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

निष्कर्ष — बछ बारस के दिन की गई गाय की पूजा और तिलक विधि, साथ ही कथा सुनना, माताओं की संतान के प्रति स्नेह और समर्पण को दर्शाता है। यह व्रत परिवार के सभी सदस्यों के लिए एक सुखमय और समृद्ध जीवन की कामना करता है और धार्मिक आस्था को प्रगाढ़ बनाता है।

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