Homeज्योतिष/धर्मबड़ी /कजरी तीज 22 अगस्त को कथा और मनाने की विधि जाने।

बड़ी /कजरी तीज 22 अगस्त को कथा और मनाने की विधि जाने।

भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को जो तृतीया तिथि आती है उसको बड़ी तीज कहते है। इस तीज को कजरी तीज भी कहा जाता है। इस दिन सुहागिने अपने पति की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए व्रत करती है। हर साल कजरी तीज का त्यौहार बहुत धूमधाम से मानाया जाता है। कजरी तीज़ या बड़ी तीज आज 22अगस्त को है जो गुरुवार के दिन है। कुछ जगहों पर ख़ासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को सातूड़ी तीज भी बोलते है। इस दिन औरते पुरे दिन बिना पानी पिए रहती है। शाम को महिलाए पहले कथा सुनती है फिर पूजा करके चाँद की पूजा करके चावल, गेहूं और चने के बने सतु से व्रत खोलती है। पुरे देश मे राजस्थान मे इस तीज का महत्व बहुत महत्वपूर्ण है। राजस्थान मे तो इस व्रत को 4 साल की बच्ची भी करती है।

बड़ी ( कजरी ) तीज का व्रत बिलकुल करवा चौथ के जैसे ही होता जे इस दिन भी महिलाए पुरे दिन बिना पानी पिए रखती है। बड़ी तीज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. साथ ही सोलह शृंगार कर गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोल जाता है। इस तीज को भारत मे कई नाम से बोला जाता है कजरी तीज को कजली तीज, बड़ी तीज, बूढ़ी तीज या सतूरी तीज नाम से भी जाना जाता है।

बड़ी तीज का शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त को शाम 5.15 से शुरू होगी और ये अगले द‍िन दोपहर 1:46 बजे तक रहेगी।इसल‍िए उदया तिथि के अनुसार ये व्रत 22 अगस्‍त को रखा जाएगा. इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5:50 से सुबह 7:30 के बीच रहेगा।

बड़ी तीज मनाने का कारण पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। मां पार्वती ने 108 सालों तक भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या किया था। देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस तपस्या और प्रेम की कहानी को याद करते हुए कजरी तीज के दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।

बड़ी तीज और कजरी तीज की एक बहूचर्चित व्रत कथा

बड़ी तीज की व्रत कथा जो राजस्थान मे विशेषकर जोधपुर मे सुनाई जाती है। एक गांव में गरीब ब्राह्मण का परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने में आने वाली कजली तीज का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा, हे स्वामी आज मेरा तीज व्रत है। कहीं से मेरे लिए चने का सत्तू ले आइए लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर कहा कि मैं सत्तू कहां से लेकर आऊं भाग्यवान। इस पर ब्राहमण की पत्नी ने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर चने का सत्तू चाहिए। इतना सुनकर ब्राह्मण रात के समय घर से निकल पड़ा वह सीधे साहूकार की दुकान में गया और चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बना लिया।

फिर ब्राह्मण जैसे दूकान से निकला तो एक जोर से आवाज जिस कारण साहूकार के नौकर उठ गए और उसको पकड़ लिया फिर ब्राह्मण बहुत डर गया। ब्राह्मण घबराकर बोलने लगा की मुझे छोड़ धो मै बहुत गरीब हु मै चोर नहीं हु। मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है। इसलिए मैंने यहां से सिर्फ सवा किलो का सत्तू बनाकर लिया है। ब्राह्मण की तलाशी ली गई तो सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला। उधर ब्राह्मण की पत्नी इंतजार कर रही थी और चाँद भी निकल आया। ज़ब ब्राह्मण की तलाशी लीतब उसके पास सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला। ये देख साहूकार नेउसकी हालत समझी और बोला अब से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर अच्छे से विदा किया। सभी ने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे।

बड़ी तीज की पूजा विधि – इस दिन महिलाए अपने घर मे नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और चावल चढ़ाएं। नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाएं। मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए। नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं। दीवार पर लगी बिंदियों के सहारे लच्छा लगा दें। नीमड़ी माता को कोई फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें। पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि देखें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दे।

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