हर साल भाद्रपद की कृष्ण शुक्ल में जो नवमी आती हे बहुत बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस भाद्रपद श्री कृष्णा सुख नवमी को लोक देवता गोगा नवमी मनाई जाती हे। गोगादेव राजस्थान के बहुत प्रसिद्ध लोक देवता है। इनको जाहरवीर के नाम से भी बुलाया जाता है। गोगा देव लोक देवता होने के कारण भाद्रपद कृष्ण नवमी को इनके लिए मनाया जाता है। गोगादेव बहुत चमत्कारी पुरुष थे और कहा जाता है कि कितने भी जहरीले सांप खतरनाक सांप क्यों नहीं हो गोगादेव उनको अपने वश में करते थे।
गोगादेव का भाद्रपद कृष्ण शुक्ल की नवमी को इनका जन्म हुआ था। वह बहुत चमत्कारी थे। उनको लोक देवता के अलावा पीर भी कहा जाता है। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास ददरेवा में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है । भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं।
वाल्मीकि समाज गोगा नवमी को बहुत हर्षोल्लास से मनाते हे और कहा जाता हे की मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में भी इसे मनाया जाता है. कथा के अनुसार यहां गोगाजी को सांपों का देवता भी कहा जाता है और इस रुप में इन्हें पूजा भी जाता है। कहते हैं गोगादेव की पूजा से निसंतान दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। गोगादेव के पास नागों को वश में करने की शक्ति थी, इनकी पूजा से सर्प के डसने का भय नहीं रहता। इसके अलावा सनातन धर्म वाले अपने घर मे दूध का हल्का हल्का छिड़काव करते हे।