जितेन्द्र हर्ष ( राजनितिक विश्लेषण )
भारत एक ऐसा देश है जहां विविधता में एकता की अद्भुत मिसाल देखने को मिलती है। इस देश में हर धर्म, समुदाय, और जाति को अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन, कुछ राजनीतिक शक्तियां इस एकता को तोड़ने और धार्मिक समुदायों के बीच दरार डालने की कोशिश कर रही हैं। ऐसा ही एक मामला खालिस्तान के मुद्दे से जुड़ा है, जिसमें सिख समुदाय को भारत के खिलाफ भड़काने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस संदर्भ में, राहुल गांधी के हालिया बयानों ने इस विवाद को और भी अधिक जटिल बना दिया है।
सिखों को भड़काने की साजिश
राहुल गांधी द्वारा अमेरिका में दिए गए बयानों ने एक गंभीर विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने सिखों से कहा कि भारत में सिखों के लिए पगड़ी पहनने या कड़ा पहनने जैसे धार्मिक प्रतीकों को लेकर लड़ाई हो रही है। यह बयान बेहद चौंकाने वाला है, क्योंकि भारत में सिख समुदाय को कभी भी अपनी धार्मिक पहचान को लेकर कोई दिक्कत नहीं हुई है। सिख समुदाय के लोग गर्व से अपनी पगड़ी और कड़ा पहनते हैं और उन्हें इस बात की कोई रुकावट नहीं है।
वास्तव में, सिखों की धार्मिक पहचान को लेकर केवल एक बार बड़ी समस्या हुई थी, और वह था 1984 का सिख विरोधी दंगा। उस समय इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सिखों के खिलाफ हिंसा की थी। सिखों को निशाना बनाया गया, और उनकी धार्मिक पहचान—पगड़ी और कड़ा—उनके लिए संकट का कारण बनी। कांग्रेस पार्टी की भूमिका उस समय भी विवादास्पद थी, और आज भी सिख समुदाय के कई लोग उस घटना को भुला नहीं पाए हैं।
1984 मे कांग्रेस कि भूमिका
1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय हैं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस के कई नेताओं पर सिखों के खिलाफ हिंसा को उकसाने के आरोप लगे। उस समय, दिल्ली और अन्य शहरों में हजारों सिख मारे गए, उन्हें जिंदा जलाया गया, और उनके घरों और संपत्तियों को नष्ट कर दिया गया। इस भयावह स्थिति में, कई सिखों ने अपनी धार्मिक पहचान को छुपाने के लिए अपने बाल कटवा लिए, पगड़ी पहनना बंद कर दिया, और कड़ा उतार दिया।
आज राहुल गांधी द्वारा दिया गया बयान इस दर्दनाक इतिहास को फिर से कुरेदने जैसा है। भारत में आज सिख समुदाय को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी प्रकार की चुनौती नहीं है। वे शान से अपनी पगड़ी पहनते हैं और अपने कड़े को धारण करते हैं। किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने से उन्हें नहीं रोका जाता। ऐसे में, राहुल गांधी का यह कहना कि सिखों को उनकी धार्मिक पहचान को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है, एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ उठाना है।
कांग्रेस और खालिस्तान का इतिहास
खालिस्तान का मुद्दा भी कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी से जुड़ा हुआ है। इंदिरा गांधी ने अकाली दल की राजनीति को कमजोर करने के लिए जरनेल सिंह भिंडरांवाले को बढ़ावा दिया था, जो बाद में खालिस्तान आंदोलन का प्रमुख चेहरा बन गए। इस राजनीतिक खेल का परिणाम यह हुआ कि पंजाब में आतंकवाद बढ़ा, और सिख समुदाय के भीतर भी विभाजन की स्थिति पैदा हो गई। इंदिरा गांधी की हत्या भी इसी मुद्दे से जुड़ी थी, जिसका खामियाजा पूरे सिख समुदाय को भुगतना पड़ा।
राहुल गांधी का बयान न केवल सिख समुदाय को भड़काने की कोशिश है, बल्कि यह उस आग में घी डालने जैसा है, जिसे कांग्रेस ने दशकों पहले खुद प्रज्वलित किया था।
विदेशी धरती पर भारत को बदनाम करने की कोशिश
राहुल गांधी के बयानों में एक और चिंताजनक पहलू यह है कि वे विदेशी धरती पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। जब वे अमेरिका या अन्य देशों में जाकर यह कहते हैं कि भारत में सिखों पर अत्याचार हो रहा है, तो वे न केवल अपने देश को बदनाम कर रहे हैं, बल्कि विदेशी शक्तियों को भारतीय मामलों में हस्तक्षेप करने का मौका भी दे रहे हैं। यह एक खतरनाक खेल है, जिसका परिणाम भारत के आंतरिक शांति और सुरक्षा पर पड़ सकता है।
राहुल गांधी के हालिया बयान भारत की आंतरिक शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। भारत में सिख समुदाय को पगड़ी पहनने, कड़ा पहनने, और गुरुद्वारे में प्रार्थना करने की पूरी स्वतंत्रता है। ऐसे में, सिखों को भड़काने और खालिस्तान के नाम पर देश को बांटने की साजिश न केवल देशविरोधी है, बल्कि यह एक गहरी साजिश की ओर इशारा करती है। कांग्रेस पार्टी को इस मुद्दे पर अपनी भूमिका की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और भारत की एकता को कमजोर करने के बजाय इसे मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए।