कोलकाता में एक आईएएस अधिकारी की पत्नी के साथ हुए रेप मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने शुक्रवार को पुलिस की जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए और आरोपी की जमानत रद्द कर दी। जस्टिस राजर्षि भारद्वाज ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि शुरुआत में सही तरीके से एफआईआर दर्ज नहीं की गई और आरोप पत्र को विकृत किया गया, जिससे जांच की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
14-15 जुलाई की रात पीड़िता के घर में घुसकर बंदूक की नोक पर आरोपी ने बलात्कार किया था। पीड़िता ने अगले दिन लेक पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने गंभीर आरोपों के बावजूद मामूली धाराओं में एफआईआर दर्ज की। इसके अलावा, सीसीटीवी फुटेज की जांच नहीं की गई और आरोपी के परिवार द्वारा पुलिस स्टेशन में धमकाए जाने की घटना को नजरअंदाज कर दिया गया।
हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच को एक महिला डिप्टी कमिश्नर स्तर के अधिकारी को सौंपने का आदेश दिया है। साथ ही, पुलिस के छह अधिकारियों—ओसी, एक सब-इंस्पेक्टर, एक सार्जेंट, और तीन महिला पुलिसकर्मियों—के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया गया है।
बीजेपी ने इस मामले पर राज्य सरकार की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि इस केस में भी आरजी कर अस्पताल मामले की तरह सबूतों को दबाने की कोशिश की गई है।
इस घटना ने न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं बल्कि पुलिस की कार्यप्रणाली और न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता को लेकर भी कई बहसों को जन्म दिया है।